(नागपत्री एक रहस्य-14)
चमत्कारिक चाबी और उसके दर्शन, अपने पिता के द्वारा किए जाने की बात सुन दिनकर जी को अत्यंत हर्ष हुआ, और मन ही मन उस चाबी को देखने की लालसा भी पैदा हुई,
लेकिन चंदा के मन में स्त्री स्वभाव के कारण अभी तक ताले की बात रह रहकर उठ रही थी, कि आखिर जब चाबी का यह महत्व है, तो ताला भला किस चमत्कारिक रहस्यों को लिए हुए होगा??आखिर क्या उस ताले के लिए ही वह चाबी बनाई गई है??यदि हां तब फिर उसका महत्व क्या है??
सावित्री देवी, चंदा की मनोदशा को उसकी व्यग्रता देख समझ गई और कहने लगी, चंदा मैं जानती हूं कि तुम्हारे मन में ताले के रहस्य को लेकर अनेकों सवाल उठ रहे हैं,
लेकिन तुम्हें यह स्पष्ट कर दूं, कि जहां एक और चाबी सकारात्मक शक्तियों को सक्रिय कर देने वाली है, तो वही मंदिर के दक्षिण द्वार के पास रखा वह ताला, जहां एक सक्रिय ज्वालामुखी जैसा जिसका कोई भी अंश उस संपूर्ण पर्वत श्रृंखला पर नहीं देखा जा सकता है, के पास नजर आता है।
ऐसा कहा जाता है कि एक बार किसी नकारात्मक शक्ति की उपस्थिति को देख नागराज अत्यधिक क्रोधित हुए, क्योंकि बिना अनुमति के वह शक्ति वायु मार्ग से किसी अन्य दिशा से होती हुई ग्राम में प्रवेश कर गई, और सामान्य जन को प्रभावित करने का प्रयास कर रही थी, जिससे नागराज अत्यंत क्रोधित हुए।
उस शक्ति ने अपने विभिन्न अंशो को कुछ लोगों में बांट दिया, और उन्हें प्रभावित कर उन्हें विवश किया कि वे नाग देवी के मंदिर में जाकर, उस तिलस्मी चाबी को हासिल करें, या उस पवित्र सरोवर जहां नागदेवियां निवास करती है, उस पवित्र जल को हासिल कर लेकर आए, जिससे उन ताकतों को जगाया जा सके।
जिन्हें युगों युगों से पाताल की गहराइयों में दफन कर रखा गया है , क्योंकि संपूर्ण ब्रह्मांड में नागशक्ति ही एक ऐसी शक्ति है, जो किसी भी लोक में आगे जाने में सक्षम है, वह स्वतंत्र है संपूर्ण ब्रह्मांड में विचरण करने के लिए, जब तक अभिशापित न हो जाए, कोई स्थान या बंधन में ना बांध रखा हो किसी जगह को.....
नाग शक्ति आसानी से हर जगह पहुंच पाने में समर्थ है, क्योंकि इस सृष्टि के जन्म से लेकर उसके विनाश तक प्रत्येक पल की साक्षी है ये नाग देवियां.....
और इसलिए जहां साक्षात उनका निवास स्थान हो, और जहां खुद महादेव की उपस्थिति हो, तब भला उनके स्पर्श करने वाला उस सरोवर का जल कितनी चमत्कारी शक्तियों वाला होगा, जिसके जल के महज एक बूंद से ना जाने कितनी ही शक्तियों की काया पलट की जा सकती है,
निर्भर करता है उसके उपयोग के आधार पर, बस यही सोचकर उस नकारात्मक शक्तियों ने कुछ चंद लोगों को अपने वश में कर मंदिर की ओर रुख किया,
नागराज सब कुछ जानते थे, लेकिन कुल देवियों से संरक्षित ग्राम में किसी के एक बार प्रवेश के पश्चात उन्हें प्रत्यक्ष रूप से हस्तेक्षप की अनुमति नहीं थी।
इससे संबंधित एक कथा और भी है, इसका वर्णन मैं बाद में करुंगी, पहले इसे ध्यानपूर्वक सुनो....
नागराज अपने वचन में बाधित होने के कारण कुछ कर नहीं सकते थे, लेकिन उन नाग देवियों को उन्होंने अपनी विवशता का परिचय दे रखा था, जिसके कारण नागदेवियों ने उनके वचन को बरकरार रख, प्रमुख द्वार की ही तरह दक्षिण द्वार के पास उत्तम स्थान प्रदान किया, और शिव शक्ति की शीतलता उन्हें प्रदान की,
लेकिन वे बेचारी भूल गई की, शक्ति शीतल और सौम्य तो हैं हि, लेकिन जब क्रोधित हो तो संपूर्ण विनाश करने की भी ताकत रखती है।
शिव अत्यंत सौम्य और शालिन है, लेकिन क्रोधित होने पर उन्हें महाकाल क्यों कहा जाता है, यह सभी जानते हैं लेकिन पहले से ही अनेक व्यग्र स्वभाव को देखकर नाग देवियों ने उन्हें शिव कृपा प्रदान की थी, जिससे उनकी व्यग्रता कम हो,
लेकिन भला वे भी कहां जानती थी, कि पिता के क्रोधित होने पर उन्हें संभाल पाना सृष्टि में किसी के भी वस में नहीं था, अन्यथा वे स्वयं ही ऐसा वरदान नागराज को नहीं देते।
जब संपूर्ण संरक्षण से परिपूर्ण मनुष्य द्वार को छोड़कर नकारात्मक शक्तियों ने दक्षिण द्वार से प्रवेश करना चाहा, तब वे अपने पूर्ण आवेग और शक्ति के साथ आगे बढ़ते हुए, दक्षिण द्वार तक पहुंचे ही थे, कि अचानक उन्हें नागराज का आह्वान करना पड़ा, जिसकी उम्मीद उन्हें कदापि नहीं थी,
क्योंकि उनकी जानकारी के अनुसार दक्षिण द्वार बिना किसी शक्ति संरक्षण के रखा गया था, इसके पीछे कुछ विशेष कारण भी थे,
खैर जो भी हो जब वे शक्तियां अत्यंत वेग के साथ चली, तो उन्हें नागराज ने वहीं रोक दिया, और विनय पूर्वक समझाया कि वे उन बेचारे ग्राम वासियों को अपने बंधन से मुक्त करें, लेकिन वे नहीं माने।
जब नागराज को क्रोधित होते उन्होंने देखा, तब स्थिति बिगड़ते देख, उसने ग्राम वासियों के शरीर को छोड़ एक शक्तिशाली स्वरुप प्राप्त कर लिया, और नागराज के समक्ष युद्ध को उपस्थित हो गए।
उस समय जो ग्रामवासी उसकी चपेट में थे, जैसे ही नकारात्मक शक्ति से आजाद हुए, और उन्हें खुद का भान हुआ, उन्होंने तुरंत पलटकर कुलदेवियों का आह्वान किया, और क्षमा याचना कर बहुत दूरी बना जाकर खड़े हो गये।
उस समय नकारात्मक शक्ति खुद नागराज में परिणित होने जा रही थी, और लगातार नागराज से लड़ने को उद्धत थी, समझ पाना संभव न था कि उसकी मंशा क्या है??
लेकिन नागराज भली-भांति जानते थे उसके उद्देश्य को, क्योंकि यदि शक्ति प्रहार कर दे, और जरा भी चूक होती तो उस शक्ति का परिवर्तित स्थान नागदेवियों से संरक्षित स्थान, अर्थात हमारा गांव होता।
इतनी नकारात्मक सोच उनके अंदर समाहित शिवशक्ति बर्दाश्त न कर सकी , और उन्होंने विकराल स्वरूप ले, वही दक्षिण द्वार के पास एक स्थान को चुना और तेज फुंकार के साथ एक ज्वालामुखी प्रकट किया।
शायद उनके मुख से निकलने वाले विष और ज्वाला ने पाताल तक एक सुराग बना दिया, और अपनी शक्ति से उस नकारात्मक शक्ति को वहां स्थित कर भस्म कर दिया, तब उन्होंने अपने अंतिम प्रहार के साथ ज्वालामुखी के ऊपर ऐसी नकारात्मक शक्तियों को कैद करने के लिए उस ताले की स्थापना की।
जिसकी प्रतिकृति (छाया) वहां उठती ज्वाला में नजर आती है, इसलिए जब भी कोई ऐसी पीड़ा किसी को नजर आए, उसे आज भी दक्षिण द्वार से प्रवेश कराया जाता है, जिसके पहुंचते ही वह ताला उस नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित कर उस ज्वालामुखी में नष्ट कर देता है।
क्रमशः .......
Babita patel
15-Aug-2023 01:59 PM
Nice
Reply